तेरे निशान

तेरे निशान


तेरी डगर ही मैं चला तेरे निशान खोजता
अंधकार घेरता जब मुझे जगत अज्ञान का                मिलेगा जीवन अर्थ भी चला हूं मैं ये सोचता                  बस एक धुन और इक लगन डिगे ना मेरा हौसला।

उजागर रहा है पथ मेरा तेरे ही बाले दीप से
लिया हरेक फैसला तेरी सिखाई सीख से
तुमने दिखाया रास्ता जब भी पांव भटके मेरे
तुमने ही थामा हाथ ये जो लड़खड़ाए कदम मेरे।

तुम सदा ध्रुव से खड़े मार्ग दिखलाते हुए
तुम रहे हो दीप स्तंभ राह चमकाते हुए
तुम दिया वो आस का तूफान से जो लड़ गया
तुम ने सिखलाया मुझे, जो डर गया वो मर गया।।

आभार – नवीन पहल – २५.०७.२०२३ 😊😊

# डैनी

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सुन्दर सृजन और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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